✍✍आज इस प्यारे वतन पर जान भी मैं वार दूँगा✍✍
सुर भी जिस पर तरसते हैं,पुण्य कर लें, जन्म लेकर,
नर नहीं पशु ही बना दो, आर्य भूमि पर, प्रभु आशीष देकर,
उस विभु आशीष से, भारत माँ का श्रृंगार दूँगा,
आज इस प्यारे वतन पर जान भी मैं वार दूँगा।।1।।
जिस धरा पर पार्थ को गीता सुनाई कृष्ण ने अवतार लेकर,
तुलसी ने गंगा बहाई,राम चरित का आधार लेकर,
उस गंगा में स्नान कर मैं,भारत माँ का श्रृंगार दूँगा,
आज इस प्यारे वतन पर जान भी मैं वार दूँगा।।2।।
राणा ने अरि के हृदय को भेद डाला शूल लेकर,
लक्ष्मी ने गोरों के शीश को काट डाला तलवार लेकर,
खड्ग से राष्ट्र के वैरी का दमन कर, भारत माँ का श्रृंगार दूँगा,
आज इस प्यारे वतन पर जान भी मैं वार दूँगा।।3।।
भगत की राष्ट्रभक्ति को स्वबल का संबल बनाकर,
आज़ाद की आज़ादी से त्याग का अमृत बहाकर,
त्याग,तन,मन और धन से,भारत माँ का श्रृंगार दूँगा,
आज इस प्यारे वतन पर जान भी मैं वार दूँगा।।4।।
चाणक्य की राष्ट्रनीति का मैं आवाहन करूँगा,
वीर शिवा की ललकार का पुनः फिर मैं स्मरण करूँगा,
राष्ट्र नीति के ‘अभिषेक’ से,भारत माँ का श्रृंगार दूँगा,
आज इस प्यारे वतन पर जान भी मैं वार दूँगा।।5।।
$$$अभिषेक पाराशर$$$