☘️🍂🌴दे रही है छाँव तुमको जो प्रेम की🌴🍂☘️
और कुछ कठिन हो तो वह भी डाल देना।समय का अभाव है बस।
दे रही है छाँव तुम्हें जो प्रेम की,
स्नेह सिंचित भाव की डाली समझना,
प्रणय आँगन खिल उठा है,
भर उठी मुस्कान से कली सब,
शुष्क पत्तों के आसन पर,
द्वेष सारे हैं तजे सब,
तुम जो बैठो हो निर्दोष बनकर,
मन्द स्वर में गाई हुई प्रभाती समझना,
दे रही है छाँव तुम्हें जो प्रेम की,
स्नेह सिंचित भाव की डाली समझना।।1।।
सन्निकट पुस्तिका पर नाम मेरा,
संकोच बस वह छिप गया है,
मैं छिपा हूँ शब्द बनकर हृदय में,
जैसे कोने का सहारा लिया है आपने,
एक कण भी पंकिल नहीं है देह में,
अधर पर चमकती लाली समझना,
दे रही है छाँव तुम्हें जो प्रेम की,
स्नेह सिंचित भाव की डाली समझना।।2।।
मोम सी मूरत बनी है धैर्य से,
एक लहर जैसे समाती लहर से,
मैं ही सहारा हूँ समझना कोण में,
मैं मिला तुमसे कभी किस मोड़ में,
जैसे कहीं छिपी अज्ञात मुस्कान है,
सूक्ष्म सी समेकित प्रेम की पाती समझना,
दे रही है छाँव तुम्हें जो प्रेम की,
स्नेह सिंचित भाव की डाली समझना।।3।।
हाथ पर हाथ जो हाथ रखे हैं आपने,
मेरा समझकर हाथ पर है हाथ फेरा,
मोहिनी नयन भी ऐसे वार करते,
शिथिल करते देह को ज्यों प्राण निकले,
जो उकेरे हैं मान्यवर तुम्हारे चित्र को,
उस धनी को धन्यवाद ज्ञापित समझना,
दे रही है छाँव तुम्हें जो प्रेम की,
स्नेह सिंचित भाव की डाली समझना।।4।।
पैर जो प्रसरित किये हैं आराम से,
यथा प्रेम को फैलाव देना ध्यान से,
अज्ञात जीवन ही जिया है अभी तक, हे मधुर!
ज्ञात जीवन की दिशा यदि खींचनी हो,
मन हृदय को एककर जब साँस लो,
जो दीख जाए प्रथम में, उसे ही साथी समझना,
दे रही है छाँव तुम्हें जो प्रेम की,
स्नेह सिंचित भाव की डाली समझना।।5।।
©®अभिषेक पाराशर
कितना टाइम बर्बाद करा दिया।।
##अपुन झुकेगा नहीं##
##अपनी किताब तो भेज ही दो,रूपा##
##कहाँ गए तुम्हारे फूफा,😏😐🤗🤗😘##