★तृष्णा★
कैसा लगता है?
जब वर्षों बाद अचानक,
वो मिल जाए,
जिसे पाने की ,
असंख्य मिन्नतें व्यर्थ हुई हो।
जो दिल के एक कोने पर,
दखल कर,
उसे खाली छोड़ गया हो।
वह जो वक्त के हर अध्याय से,
चुपचाप, झाँकता हो।
वह जिसकी यादों से,
लिपटकर
जार-जार रोए हो।
जिसे स्वाति बूँद मान,
किसी चातक की भाँति ,
चिर प्रतीक्षा किए हो।
यह शायद कुछ ऐसा ही है,
जैसे, कोई “सतर्ष”,
किसी मृगमरीचिका,
को देखकर,
अपार आनंद से भर उठे,
परंतु “तृप्त” न हो सके।
जीवन प्रतीक्षा नही,
सतत परिवर्तन है।
तृष्णा प्रेरित,
शून्य से शून्य तक की,
अनंत यात्रा है।
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©सौरभ सतर्ष
#अतीत_अभी_अभी
(सतर्ष-प्यासा)