● जिन्दगी एक रंगमंच ●
खुदा ने भी क्या खूब
रंगमंच बनाया है,
हर इंसा को यहाँ
अजीब रंगकर्मी बनाया है !
क्या गजब की भूमिका,
होती है सभी की ;
कोई अपना अभिनय
बड़ी सिद्दत से निभा रहा है
और कोई किसी गरीब को,
मय मूल-सूद खा रहा है
ये अजीब नाट्यशाला है,
इन बेटियों का यहाँ
कौन रखवाला है ।
किसी को जन्म से,
पहले नोंचा जाता है
तो किसी को जन्म के बाद
फेंका जाता है ।
हर दिन सुर्खियां
नई-नई जुट रही है,
किसी का घर लुट रहा है
तो किसी की इज्जत लुट रही है ।
हाँ अय्याशी इस रंगमंच की
मुख्य अभिव्यक्ति है,
बदलती दुनिया की
विलासित संस्कृति है !
हर रिश्ते में आज
बेईमानी होती जा रही है
पनपेगा वो खेत कैसे
जब बाड़ खेत को खा रही है !
-पवन जयपुरी