●【–मैं क़तरा ज़मी का–】●
चमक चहरे पे मग़र
दिल मे दर्दों के साए रहते हैं।
मैं ज़मी का ऐसा क़तरा हूँ
जिसके सर पे सदा बादल छाए रहते हैं।
एक पल भी सुकूँ का
मुझको मिल नही पाता।
अनजाने से कुछ शोर सदा
मेरी महफ़िल में आए रहते हैं।
हँसता हूँ तो दिल से कभी
हँस भी नही पाता।
कभी सपने कभी अपने मुझे
रुलाए रहते हैं।
मिलते हैं ख़ुशी के पल कभी
तो वो भी साल में आकर के।
उसमे भी दुःखों का इक़ खंज़र
वो अंदर छुपाए रहते हैं।
जीवन ये मेरा मुझसे हरदम
इम्तिहान लेता रहता है।
बना दिया मुझको ऐसा मुसाफिर राहों का,
जो ठोकर दर दर की खाए रहते हैं।