●{◆|◆ वो पुराने दिन ◆|◆}●
वो पुराना गाँव
वो पुराने लोग
वो बुजुर्गों का प्यार
वो बड़ों का दुलार
कहाँ खो गए।
वो पुराना खेल
वो अपनों से मेल
वो पुरानी आपसदारी
वो सब संग साझेदारी।
कहाँ खो गए।
वो पुराना रिवाज़
वो पुराना इतिहास
वो एक दूसरे का साथ
वो एकता की बात
कहाँ खो गए।
वो दादी की लोरियाँ
वो बच्चों की टोलियाँ
वो गाँव का मेला
वो आइसक्रीम का ठेला
कहाँ खो गए।
वो चिड़ियों की चहक
वो पुष्पों कि महक
वो मेहमानों कि चिट्ठी
वो गाँव कि मोहक मिट्टी
कहाँ खो गए।
वो गाँव के कच्चे घर
जहाँ गर्मी थी बेअसर
वो साइकिल से आना-जाना
वो नदी तालों में नहाना
कहाँ खो गए।
वो सर्दी में आग तापना
वो ग्रीष्म में पेड़ की छाँव में बैठना
वो वृक्षों की डाली
वो गेहूँ की सुंदर बाली
कहाँ खो गए।
वो यारों संग मस्ती
वो प्रेरणा कि बस्ती
वो बरगद का ऊँचा पेड़
जहाँ होती कुश्ती की मुठभेड़
कहाँ खो गए।
वो कुएँ का मीठा जल
वो बच्चों का कोलाहल
वो पेड़ों से आम तोड़ना
वो पेड़ों पर झूला झूलना
कहाँ खो गए।
वो गोरुवों को चराना
वो बाध से खाट बनाना
वो सादी सी वेशभूषा
जो ढकता शरीर समूचा
कहाँ खो गए।
वो प्यारी सी भाषा सुनकर
जिसे मिट जाती समस्त निराशा
वो स्वच्छ भरी हवा
जो स्वयं में थी दवा
कहाँ खो गए।
वो जामुन की डाली
वो गाती कोयल काली
वो टिकटिक करती तांगागाड़ी
वो फ़सल ढोती बैलगाड़ी
कहाँ खो गए।
वो रेडियो का समाचार
वो वैधों का उपचार
वो भोर का मौसम सुहाना
वो मुर्गे का बांग लगाना
कहाँ खो गए।
वो चूल्हे में खाना पकाना
वो खाना साथ बैठ के खाना
जमाने के अब तो बड़े बखान हो गए
वो दिन पुराने जाने कहाँ खो गए।
कवि-वि के विराज़