●स्त्री या वेदना●
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तुम माँ बहन भार्या हो, जग में खूब सम्मान है।
हाँ,तुम वही स्त्री हो, सृष्टिकर्ता तेरी पहचान है।
तुम अबला बन सहती हो, समाज के जुल्मों सितम।
शिक्षा की देवी हो तुम, भावे न तुमको अहम।
पुरुष जो तुमने जन्म दिया,वही पौरुष दिखलाते है।
कभी प्यार कभी रौब से, अपना हुकुम चलाते हैं।
काली दुर्गा देवी बन, तिहु लोक में पूजी जाती हो।
रणचंडी नारायणी बन, शक्ति स्वरूपा कहलाती हो।
पर कहीं कहीं भाग्य ने, बेरहम हाथों में थोप दिया।
अनचाहे पौधे जैसे , दहेज मरु में रोप दिया।
ना समझे जग तेरी पीड़ा, कोख में तू मेरी जाती।
कहीं बेरहम कहीं कोठोंपर, मर्यादा तार तारी जाती।
बन लक्ष्मी मूरत तुम, ममता रूप दिखाती हो।
जब बढ़ जाये पाप धरा पर, चामुंडा बन जाती हो।
कहीं दरिंदों के हाथों, मर्यादा कुचली जाती है।
बन स्त्री रूप जघन्य सहती,तू वेदना की थाती है।
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◆अशोक शर्मा , लक्ष्मीगंज कुशीनगर , उ.प्र.◆
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