{{◆ ज़हर पी कर आए है ◆}}
कोई अपना नही, यहाँ सगे भी पराए है
जिसने कुचला मुझे पैरों तले, वो अपने बन कर आए है
मैं बारिश की बूंद सी बेदाग निश्छल
उसे मेरे दामन में, सिर्फ कीचड़ ही नज़र आए है
हम जिनकी आँखों में अपना अक्स ढूंढते रहे
वो गैर की बाँहो में, पिघल कर आए हैं
ये इश्क़ की दुनिया भी, ज़ख्मो से आबाद है
दवा की उम्मीद जिनसे थी, उन्ही से नमक लगाकर आए है
आँसुओ के हर मोती में, एक तेरी ही तस्वीर है
रास्ते की क्या औकात, हम दिल से ठोकर खाए है
कभी जो मेरी सलामती की दुआ किया करते थे
आज उन्ही के हाँथो, ज़हर पी कर आए है