{{◆ सावन मास में ◆}}
मोती बरस रहा सावन मास में
विचलित मन विरह की आग में
तन की काया ढूंढे उनकी छाया
रोम रोम भीगना चाहे प्रेम राग में
मन भी हो रहा कुछ बावरा
खिला है यौवन का रूप सारा
काले बादल देख कर
पंछी भी उड़ते बन के आवारा
बारिश की इस मधुर बेला में
कोयल भी झूम उठी इस मेला में
रात के सन्नाटे में
पपीहा रोता पा के खुद को अकेला में
जब- जब ये सावन बरसेगा
दिल तेरे मिलन को तरसेगा
तुझे एक नज़र देख के
फिर ये दिल, दिल सा धड़केगा
अबकी सावन कुछ ऐसे आए
हर चेहरे पे मुस्कान छा जाए
आनंदित हो हर जन
दिल झूम के पिया मिलन के गीत गाए
डालो पे लग गया झूला है
मौसम अपनी धुन में अलबेला है
रूहानी इस मौसम में
लगा हरियाली का रेला है
धरती जो प्यासी थी
कुदरत पे छाई उदासी थी
सौंधी सी महक है चारो ओर
बून्द बन अमृत आज बरसी थी
बारिश की बूंद मन को भाए
काली घटाए बांण चलाये
ऐसे सुहाने मौसम में
हर ओर बस बहारे ही छाए