◆#लघुकविता
◆#लघुकविता
◆सेवाभावी लाठी◆
【प्रणय प्रभात】
“निःशक्त बुढ़ापे का,
सहज संबल “लाठी।”
जो न चीखती है,
न झल्लाती है।
मूक, बधिर,
और चक्षुहीन होकर भी,
चुपचाप फ़र्ज़ निभाती है।।
#moral-
(सेवा मूक व शांत होनी चाहिए, बड़बोली नहीं)
◆#लघुकविता
◆सेवाभावी लाठी◆
【प्रणय प्रभात】
“निःशक्त बुढ़ापे का,
सहज संबल “लाठी।”
जो न चीखती है,
न झल्लाती है।
मूक, बधिर,
और चक्षुहीन होकर भी,
चुपचाप फ़र्ज़ निभाती है।।
#moral-
(सेवा मूक व शांत होनी चाहिए, बड़बोली नहीं)