■///【बदलता दौर】■
दौर उल्फ़त का ख़तम हो गया है।
मतलबी अबहर सनम हो गया है।
पहले इंसानियत हीधरम था,अब
पैसा सभी का मजहब हो गया है।
कागज़ के नोटों पे चलती है
इस जमाने की हर रिश्तेदारी।
मोहोब्बत का सिक्का नफरत
की आग में भसम हो गया है।
नही जरूरत किसी को किसी की,
अब इंसान ख़ुद मेंमगन होगया है।
बची बस जरुरतों की आपसदारी,
यूँही कामआने कादमन होगया है।
मेहनतके मुश्किल सफर छोड़कर
चुराकर खाने का चलनहो गया है।
चलते नहीलोग पथरीली जमी पर
खुशियों पे आवा-गमन हो गया है।