लोककवि रामचरन गुप्त का लोक-काव्य +डॉ. वेदप्रकाश ‘अमिताभ ’
*आजादी तो मिली मगर यह, लगती अभी अधूरी है (हिंदी गजल)*
- मेरे अल्फाजो की दुनिया में -
बड़ी देर तक मुझे देखता है वो,
*साम्ब षट्पदी---*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
वो लुका-छिपी वो दहकता प्यार—
पहली बारिश
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
इश्क के चादर में इतना न लपेटिये कि तन्हाई में डूब जाएँ,
*अज्ञानी की कलम*
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
बाळक थ्हारौ बायणी, न जाणूं कोइ रीत।
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
मलाल है मगर इतना मलाल थोड़ी है
"कुछ तो गुना गुना रही हो"