■ सुन भी लो…!!
#अकविता-
■ कैलेंडर नहीं हूँ मैं ..!!
【प्रणय प्रभात】
सुनो….!
हां, हां, तुम्ही से कह रहा हूं मैं।
मेरी ज़िंदगी या दुनिया में नहीं-
“पार्ट टाइम” शब्द का कोई अर्थ।
ना ही काम में,
ना ही व्यवहार में।
ना रिश्ते में, नाते में,
दोस्ती में या प्यार में।
मैं पूर्णकालिक, सर्वकालिक सम्बंध में यक़ीन रखता हूं।
जो सार्वभौमिक भी हो
और शाश्वत भी।
नज़दीक़ आना चाहो तो
सलीके से आओ,
दूर जाना हो तो
इतना दूर जाओ कि,
फिर ना ख़्वाबों में आ सको,
ना ही खयालों में….।।
आत्मकथ्य के रूप में बस इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि मैं भावात्मक विचार या अकविता लिखता ही नहीं, उन्हें जीता और भोगता भी हूं। यही वजह है कि भागता नहीं किसी से। ना दुनिया से और ना ही अपने आप से। किसी भी हाल या काल में। मैं कोई कैलेंडर नहीं, जो बदल जाऊं हर नए साल में।।
■प्रणय प्रभात■
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)