■ सियासी नाटक
■ चुनावी साल…
झूठी हमदर्दी का धमाल। सियासी चाल और सियासी बगुला भगतों का कमाल। बस उसी की है यह एक मिसाल। जो इन दिनों रोज़ सामने आ रही है। किसी न किसी रूप में। ख़ास कर उन आधा दर्जन राज्यों में जहाँ इस साल तमाम बुरों में से कुछ कम बुरों को चुनना और बाद में सिर धुनना सबकी मजबूरी है। लोकतंत्र के नाम पर।।
【प्रणय प्रभात】