■ विडम्बना
#समय_की_मांग
■ परम्परा अपनाएं, रूढ़ी मिटाए
【प्रणय प्रभात】
यह विडम्बना ही है कि हम विकासशील होकर भी कुरीतियों से मुक्त नहीं हो पा रहे हैं। वजह है परंपराओं व रूढ़ियों के बीच का अंतर पता न होना। परम्परा और रूढ़ी के बीच का अंतर जब तक जबको समझ नहीं आता, तब तक प्रतिभाओं की राह बाधामुक्त नहीं हो सकती।
अंतर सबकी समझ में आए, इसके लिए दो सरल से उदाहरण देता हूँ। परम्परा और रूढ़ी में बस वही अंतर है, जो दीपावली और जुए तथा होली और नशे में है। फ़र्क़ समझिए और रूढ़ी से उबरिये। उसकी बिना पर किसी के भी अधिकार न छिनें, यह सबका साझा दायित्व है।।