■ लोक संस्कृति का पर्व : गणगौर
■ राजस्थान के टुकड़े श्योपुर में लोक संस्कृति का प्रतीक है
अखंड सुहाग का पर्व
【श्योपुर / प्रणय प्रभात】
समीपस्थ प्रांत राजस्थान की वैभवशाली व सतरंगी संस्कृति से प्रेरित व प्रभावित होकर प्रदेश में राजस्थान का टुकड़ा कहलाने वाली श्योपुर नगरी सहित जिले के बत्तीसा (बड़ौदा) और अट्ठाइसा (मानपुर) क्षेत्रान्तर्गत ग्रामीण अंचल में अखंड सौभाग्य का पर्व गणगौर कल 24 मार्च को पूजन पर्व के रूप में मनाया जाएगा। पूर्व परंपरानुसार चैत्र शुक्ल तृतीया को पहले दिन शिव-पार्वती स्वरूप गणगौर जोड़ों के विधि-विधान से पूजन की सम्पन्नता के साथ ही शिवनगरी श्योपुर में आरंभ हो जाएगा सांस्कृतिक विविधताओं से भरपूर तीन दिवसीय गणगौर मेला, जो समूचे जनजीवन के अनुरंजन का पर्याय बनेगा। कल को इस मेला पर्व की शुरूआत से पहले का दिन गण-गौर के कलात्मक व श्रंगारिक जोड़ों के रूप में भगवान शिव और पार्वती के सामूहिक पूजन के नाम रहेगा तथा यह पूजा सुहागिनों द्वारा अखण्ड सुहाग की सलामती तथा युवतियों द्वारा सुयोग्य वर प्राप्ति की मनोकामनाओं के साथ निर्धारित स्थलों पर सामूहिक रूप से मंगल-गीतों का गायन करते हुए आमोद-प्रमोद से परिपूर्ण परिवेश में की जाएगी। इस पूजन पर्व के लिए तमाम तैयारियां आज 23 मार्च को पर्व की पूर्व संध्या ही पूरी कर ली जाऐंगी। गणगौर पूजन-पर्व को लेकर महिलाओं और नव-विवाहिताओं में खासा उत्साह देखा जा रहा है तथा उन्होने साज-श्रंगार की तैयारियों को जारी रखते हुए गणगौर-पूजन की तैयारियों में भी अपनी संलग्रता बनाए रखी है। वहीं दूसरी ओर पर्व से सम्बन्धित सामग्रियों की खरीददारी को लेकर भी विवाहिताओं द्वारा खासा उत्साह दिखाया जा रहा है। जिसे लेकर आज पर्व की पूर्व संध्या भी बाजारों में अच्छी-खासी चहल-पहल रहनी तय मानी जा रही है। गणगौर मेले से सम्बद्ध समितियों ने बीते साल तक महामारी व अन्य कारणों से उत्पन्न अरूचिपूर्ण और अस्त-व्यस्त माहौल के बावजूद अपनी तैयारियों का सिलसिला अपने-अपने स्तर पर बिना किसी सामंजस्य के शुरू कर दिया है।जिनकी भूमिका का पता मेला पर्व के पहले दिन ही चल सकेगा।
■ हास-परिहास के बीच होगा पूजन….
कल तीज के उपलक्ष्य में गणगौर पूजन पर्व के लिए प्रात:वेला में स्नानादि से निवृत्त होकर सौभाग्यवती महिलाऐं तथा युवतियां वस्त्राभूषणों से अलंकृत होकर पूजन की सुसज्जित थालियां हाथों में उठाए गणगौर पूजन के लिए सुदीर्घकाल से नियत पारम्परिक स्थलों पर पहुंचेंगी। जहां मंगल-गीतों के साथ दीवारों पर उकेरी हुई गणगौरों का पूजन किया जाएगा। दोपहर तक हास-परिहास और आमोद-प्रमोदपूर्ण वातावरण में गणगौर-पूजन के उपरांत सांध्यवेला में गणगौरों को पानी पिलाने की परम्परा का निर्वाह किया जाएगा।
■ लुप्त हुई बाग के मेले की परिपाटी…
इस पर्व पर नगर के वार्ड सब्ज़ी मण्डी क्षेत्रान्तर्गत आने वाले पारख जी के बाग में मेला आयोजित किए जाने की परम्परा भी दशकों तक कायम रहने के बाद अब लुप्त सी हो गई है। जिसमें महिलाऐं समूह गायन और नर्तन करते हुए अपनी आस्था व उमंग का परिचय देती थीं तथा अखंड सौभाग्य की कामनाऐं करती नजर आती थीं। बीते दो-ढाई दशक से इस मेले का पर्याय संस्था स्तर पर सम्पन्न होने वाले आयोजन ने ले लिया है। जो जेसीरिट विंग द्वारा श्री हजारेश्वर परिसर के दुर्गा मंदिर प्रांगण में मनाया जाता है।
■ त्यौहार से जुड़े हुए हैं विशेष विधान….
गणगौर पूजन के लिए जहां महिलाओं द्वारा सौभाग्य-प्रतीक सामग्रियों का उपयोग किया जाता है। वहीं नैवेद्य के रूप में चढ़ाए और बांटे जाने वाले गुणे व चूड़े घरों पर बनाए जाते रहे हैं। जो अब हलवाई बनाने और बेचने लगे हैं। आटा-मैदा और बेसन से बनने वाले नमकीन और मीठे गुणे गोल छल्लों के आकार में बनने वाले देशी व्यंजन हैैं जो गणगौर को भोग लगाने के बाद घरों में वितरित किए जाने और परस्पर बदले जाने की भी परम्परा है। वहीं चूड़े आटे या मैदे से बनते हैं। जो कंगन जैसे आकार के होते हैं और उन पर चाशनी चढ़ी होती है। इस पूजन पर्व के बाद महिलाऐं अपने से वरिष्ठ महिलाओं का आशीर्वाद भी चरण स्पर्श कर प्राप्त करती हैं। इस पर्व को लेकर कुछ कथाऐं भी जनमानस में प्रचलित हैं। जिन्हें सुनने और सुनाने की परम्परा का निर्वाह भी इस पर्व पर किया जाता है।
ज्ञात रहे कि गणगौर शब्द गण के रूप में भगवान शिव और गौर के रूप में माता पार्वती के नामों को मिलाकर बना है जिन्हें सनातन धर्म में अनादिकाल से सौभाग्यदायी माना जाता रहा है।
■ सूबात रोड पर तीन दिवसीय मेला 25 मार्च से…..
श्योपुर नगरी में गणगौर मेले का आयोजन करने वाली समितियां भी तैयारियों को अंतिम रूप देने का मन बना रही है। गणगौर पर्व के तीन दिवसीय मेले का शुभारंभ 25 मार्च (चतुर्थी) की रात से होगा। जो नगरी के सूबात रोड को अगले तीन दिवस तक राजस्थानी संस्कृति की लघु अनुकृति बनाए रखता आया है। अब इसका अभाव बीते तीन दशकों से बना नजर आ रहा है। जिसके पीछे शासन-प्रशासन की उपेक्षा को अहम कारण माना जा सकता है। रेवड़ी कल्चर की जन्मदात्री राजनीति की ओर से भी इस परिपाटी को समृद्ध बनाने का कोई प्रयास कभी नहीं किया गया है। चूंकि यह साल चुनावी है। लिहाजा उम्मीद लगाई जा रही है कि धर्म व संस्कृति की ठेकेदार सत्तारूढ़ पार्टी इस बारे में कुछ सोच सकती है। कम से कम इस साल के लिए।
■ राजस्थानी संस्कृति से अनुप्राणित है नगरी…..
उल्लेखनीय है कि राजस्थान के कोटा, बारां और सवाई माधोपुर जिले की सीमाओं से महज 20 से 22 कि.मी. की मामूली सी दूरी पर स्थित मध्यप्रदेश का श्योपुर जिला खान-पान और परिधान से लेकर लोक-परम्पराओं, रीति-रिवाजों और नातों-रिश्तों सहित संस्कृति के मामले में राजस्थान का अनुगामी माना जाता है। यही वजह है कि प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले गणगौर पूजन पर्व का उल्लास जहां जिले के महिला मण्डल में हावी रहता है वहीं इस पर्व के उपलक्ष्य में जिला मुख्यालय पर आयोजित मेला सभी वर्ग-समुदायों के लिए आकर्षण का केन्द्र बनता है।
★संपादक★
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