■ मुक्तक…
#मुक्तक
■ ख़्वाहिश नहीं बची…
【प्रणय प्रभात】
“मौसम की और बाढ़ की साज़िश नहीं बची।
हम तो समझ रहे थे कि बारिश नहीं बची।।
सूखा ग़ुलाब झांक गया डायरी से ख़ुद।
ताज़ा ग़ुलाब देने की ख़्वाहिश नहीं बची।।”
प्रभात
■ प्रणय प्रभात ■