■ बस दो सवाल…
#लघुकथा-
■ “मौसी” के “मौसी जी” से…!!
【प्रणय प्रभात】
“हे भगवान! फिर खा गयी सारी मलाई। आग लगे कम्बख़्त बिल्ली के। यहीं नज़रें गढ़ी रहती है आग लगी की। निकाल कर रखते देर नहीं लगती कि उससे पहले कटोरा साफ।”
लगभग रोज़ सुनाई देने वाली यह आवाज़ मौसी की थी। जो मलाई-खोर बिल्ली को बिना पानी पिएं कोस रही थी।
उधर पलंग के नीचे चूहे की तलाश में दुबकी मरियल सी बिल्ली रोज़ की तरह आज भी इस उलाहने से बेहद दुःखी थी। वो चूहे को भूल कर लगभग 70 पार चल रही मौसी के चमकते चेहरे को ताक रही थी।
लगता था बस अभी पूछ बैठेगी दो सवाल। पहला तो यह कि दिन भर बिना कुछ खाए इतनी दमक काहे से आ रही है? दूसरा यह कि 15 दिन की शक्कर 8 दिन में कैसे निपट रही है? पर क्या करती बेचारी…? ऊपर वाले ने उसे सुनने वाले कान तो दिए। बोलने वाली ज़ुबान देना भूल गया। वरना…मौसी तो वो भी कहलाती है।।
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■प्रणय प्रभात■
श्योपुर (मध्यप्रदेश)