Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
16 Aug 2023 · 3 min read

■ प्रसंगवश….

#प्रसंगवश….
■ संचालन एक सलीक़ा
【प्रणय प्रभात】
किसी भी आयोजन में संचालक की भूमिका देह में प्राणवायु जैसी होती है। जिस पर आयोजन का परिणाम निर्भर करता है। हिंदी, उर्दू के रचनात्मक, अकादमिक व सार्वजनिक मंचों पर 30 साल संचालक रहा हूं। इस छोटे से अनुभव के आधार पर कुछ कहने का अधिकार मुझे भी है। उनके लिए, जो कभी न कभी, कहीं न कहीं इस दायित्व का निर्वाह कर रहे हैं या करने जा रहे हैं।
इस आलेख के माध्यम से कहना केवल यह चाहता हूँ कि संचालन हर तरह के निजी आग्रह, पूर्वाग्रह, दुराग्रह या बलात महिमा-मंडन का नाम नहीं है। इस तरह के बेजा प्रयास से आप चंद लोगों के कृपा-भाजन बेशक़ बन जाएं, कोपभाजन उस व्यापक समूह के भी बन सकते हैं, जो श्रोता या दर्शक दीर्घा का हिस्सा होते हैं। इस भीड़ के मानस में आपकी छवि एक चाटुकार की बनती है। वो भी दीर्घकाल के लिए। जबकि इस एवज में मिलने वाली कृपा प्रायः मामूली, तात्कालिक या अल्पकालिक ही होती है। आप जिनका दम-खम से गुणगान करते हैं, उनके लिए आयोजन आए दिन के खेल हैं और संचालक महज उद्घोषक।
याद रखा जाना चाहिए कि संचालन संस्कारित व अनुशंसित शालीनता के प्रकटीकरण का नाम है। कुटिलतापूर्ण चाटुकारिता का नहीं। संचालक निस्संदेह मुखर हो पर वाचाल कदापि न हो, यह बेहद ज़रूरी है। समयोचित तर्कशक्ति और सहज, सरस वाकपटुता एक संचालक का विशिष्ट गुण होता है। जो स्वाध्याय व सतत अभ्यास सहित स्व-आंकलन के बाद वांछित सुधार से उपजता है। दुःख की बात है कि अब संचालन का अर्थ वाचालता और चाटुकारिता हो गया है।
मुझे याद आता है कि कुछ समय पहले एक विशेष समारोह में मंच संचालक ने एक स्थानीय संगीत शिक्षक को “‘संगीत सम्राट” कह कर संबोधित किया। जो संगीत शिक्षक का सम्मान हो न हो, धरती के एकमात्र संगीत सम्राट “तानसेन” का खुला अपमान अवश्य था। महाशय की यह न पहली चूक थी, न अनभिज्ञता। वे बीते कुछ बरसों से लगातार ऐसा करते आ रहे हैं। जो न केवल शुद्ध चापलूसी है वरन सैद्धांतिक शैली के ख़िलाफ़ व्यावहारिक मूर्खता भी। चाह चंद तालियों और थोथी वाहवाही की। जो दोयम दर्जे के पद व देहाती कार्यक्षेत्र में अर्जित कर पाना संभवतः आसान उनके लिए आसान नही।
इसी तरह एक कथित समाजसेवी और पूर्णकालिक संचालक ने एक राजनैतिक कार्यक्रम में तमाम छुटभैयों और चिरकुटों को स्थानीय भीड़ के बीच युवा हृदय सम्राट, श्रद्धेय, मान्यवर सहित तमाम विशेषणों से नवाज़ डाला। मज़े की बात यह है कि इनमें आधा दर्ज़न से अधिक लोग उनके अपने मोहल्ले के थे। जिनकी पहचान नशेड़ी, सटोरिये और समाजकंटक के रूप में थी। ऐसा एकाध बार नहीं, अनेक बार हुआ। जो आपत्तिजनक भी था और शर्मनाक भी।
मेरा अपना अनुभव है कि राजनेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों को चाटुकार सदैव सुहाते हैं। उनसे इस तरह के मर्यादा-लंघन पर तात्कालिक क्रिया-प्रतिक्रिया की अपेक्षा मूढ़ता से अधिक कुछ नहीं। तथापि मुझ जैसे अकिंचन अपनी प्रवृत्ति से आज भी लाचार हैं। जो असंस्कार के नक्कारखाने में अपनी तूती बजाना नहीं छोड़ सकते। यही प्रयास आज फिर किया जा रहा है ताकि कल इस तरह की शाब्दिक उद्दंडता और वैचारिक मलेच्छता की पुनरावृत्ति न हो। यदि हो तो उसके विरुद्ध प्रतिरोध का एक स्वर किसी एक कोने से तो फूटे। इतना भरोसा तो है कि समागम की कोई सी भी यज्ञशाला ऐसी नहीं है जहां ग़लत के विरोध का साहस और सामर्थ्य रखने वालों का अभाव हो। आज नहीं तो कल इन धूर्तताओं के विरुद्ध स्वर उपजेंगे और वो भी पूरी दम के साथ।
इति शिवम। शेष अशेष।।

●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)

1 Like · 390 Views

You may also like these posts

क्षमा करो अपराध हमारा (गीत)
क्षमा करो अपराध हमारा (गीत)
Ravi Prakash
दशरथ ने पहाड़ तोड़ा.. सौहार्द शिरोमणि संत सौरभ तोड़ रहे धर्म का बंधन
दशरथ ने पहाड़ तोड़ा.. सौहार्द शिरोमणि संत सौरभ तोड़ रहे धर्म का बंधन
World News
संस्कार और अहंकार में बस इतना फर्क है कि एक झुक जाता है दूसर
संस्कार और अहंकार में बस इतना फर्क है कि एक झुक जाता है दूसर
Rj Anand Prajapati
इतनी शिद्दत से रहा इन्तज़ार मुझे।
इतनी शिद्दत से रहा इन्तज़ार मुझे।
इशरत हिदायत ख़ान
वो आया इस तरह से मेरे हिज़ार में।
वो आया इस तरह से मेरे हिज़ार में।
Phool gufran
🙏 *गुरु चरणों की धूल*🙏
🙏 *गुरु चरणों की धूल*🙏
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
मेरे सवालों का
मेरे सवालों का
Dr fauzia Naseem shad
कंधे पे अपने मेरा सर रहने दीजिए
कंधे पे अपने मेरा सर रहने दीजिए
rkchaudhary2012
चार दीवारों में कैद
चार दीवारों में कैद
Shekhar Deshmukh
श्रंगार
श्रंगार
Vipin Jain
आखिर उन पुरुष का,दर्द कौन समझेगा
आखिर उन पुरुष का,दर्द कौन समझेगा
पूर्वार्थ
एक और द्रोपदी
एक और द्रोपदी
आशा शैली
है शिकन नहीं रुख़ पर
है शिकन नहीं रुख़ पर
आकाश महेशपुरी
कलमकार का काम है, जागृत करे समाज
कलमकार का काम है, जागृत करे समाज
RAMESH SHARMA
शिगाफ़ तो भरे नहीं, लिहाफ़ चढ़  गया मगर
शिगाफ़ तो भरे नहीं, लिहाफ़ चढ़ गया मगर
Shweta Soni
#देसी_ग़ज़ल
#देसी_ग़ज़ल
*प्रणय*
प्रिय भतीजी के लिए...
प्रिय भतीजी के लिए...
डॉ.सीमा अग्रवाल
क्या खूब दिन थे
क्या खूब दिन थे
Pratibha Pandey
23/174.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/174.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
* बचपन *
* बचपन *
भूरचन्द जयपाल
" कभी "
Dr. Kishan tandon kranti
📚पुस्तक📚
📚पुस्तक📚
Dr. Vaishali Verma
” एक मलाल है “
” एक मलाल है “
ज्योति
सत्य की खोज
सत्य की खोज
Rekha Drolia
मेरा होकर मिलो
मेरा होकर मिलो
Mahetaru madhukar
उसकी याद में क्यों
उसकी याद में क्यों
Chitra Bisht
सांसें
सांसें
निकेश कुमार ठाकुर
ਐਵੇਂ ਆਸ ਲਗਾਈ ਬੈਠੇ ਹਾਂ
ਐਵੇਂ ਆਸ ਲਗਾਈ ਬੈਠੇ ਹਾਂ
Surinder blackpen
जब आवश्यकता होती है,
जब आवश्यकता होती है,
नेताम आर सी
दीपावली का आध्यात्मिक और ज्योतिषीय पक्ष
दीपावली का आध्यात्मिक और ज्योतिषीय पक्ष
इंजी. संजय श्रीवास्तव
Loading...