■ देसी ग़ज़ल…
■ देसी ग़ज़ल / छोड़ दे…!!
【प्रणय प्रभात】
★ दीप पानी के जलाना छोड़ दे।
देश को उल्लू बनाना छोड़ दे।।
★ इस तरह तो नाव बढ़ने से रही।
रेत में चप्पू चलाना छोड़ दे।।।
★ पल रहा है जिस घड़े के नीर पर।
छेद अब उसमें बनाना छोड़ दे।।
★ सूरमा बनने का भारी चाव है।
हर कहीं पे रोना-गाना छोड़ दे।।
★ हो गया पचपन का बचपन छोड़ के।
हर जगह टेसू अड़ाना छोड़ दे।।
★ देख पुरखे आसमां पे रो रहे।
साख को बट्टा लगाना छोड़ दे।।
★ मान ले बस में तेरे तू ख़ुद नहीं।
छोड़ दे शिकवे बहाना छोड़ दे।।
★ ये सुना है अब तपस्वी हो गया।
मान लेंगे, तिलमिलाना छोड़ दे।।
★ कौन सिखलाता है बातें बेतुकी।
साथ अब उसका निभाना छोड़ दे।।
★ पेंशन की उम्र में भी टेंशन।
अब तो अम्मी को सताना छोड़ दे।।
【बुरा न मानो होली है】
★प्रणय प्रभात★
श्योपुर (मध्यप्रदेश)