■ जंगल में मंगल…
#वनांचल_का _सिद्धपीठ
■ एक मंदिर : जहां तीन रूपों में दर्शन देती हैं मां अन्नपूर्णा
【प्रणय प्रभात】
भारत के हृदय मध्यप्रदेश की सीमा पर स्थित वन-बहुल श्योपुर ज़िले का धार्मिक महत्व भी कुछ कम नहीं।
ऐतिहासिक व पुरातात्विक संपदा के मामले में धनी ज़िलें की पांच तहसीलों में एक है आदिवासी बाहुल्य वाला क्षेत्र कराहल। जिसे सघन व दुर्गम वनों के कारण वनांचल भी कहा जाता है। श्योपुर-शिवपुरी राजमार्ग पर ज़िला मुख्यालय से मात्र 42 किमी की दूरी पर स्थित
कराहल का ही एक वन-ग्राम है- पनवाड़ा। जो अंचल के सिद्धपीठ के रूप में मान्य है। तीन दशक पहले तक घनघोर जंगल के बीच घिरे इसी गांव में है एक अतिप्राचीन मंदिर। जिसे मां अन्नपूर्णा के सिद्ध दरबार के लिए पहचाना जाता है। लोक-मान्यता है कि सुदीर्घकाल से विराजित माता रानी की तेजमयी प्रतिमा स्वयम्भू है, जो अपने हर भक्त की मुराद पूरी करती है। इससे भी बड़ी प्रचलित मान्यता यह है कि माता रानी की दिव्य प्रतिमा प्रति-दिन तीन रूप बदलती है। जो अपने आप में आस्थामय रोमांच से भरपूर एक रहस्य है। साक्षात अनुभव किया जाता रहा है कि मां अन्नपूर्णा सुबह बालिका, दोपहर युवती व शाम को वृद्धा के रूप में दर्शन देती है। तर्क-वितर्क से कोसों दूर आस्था की दुनिया से जुड़ी यही किवदंती इस धाम को आज तक चर्चित व प्रतिष्ठित बनाए हुए है।
श्योपुर से शिवपुरी की ओर जाने वाले दोहरे मार्ग पर तहसील मुख्यालय कराहल की नगरीय सीमा से महज 2 कि.मी. दूर बांए हाथ पर कटता है एक पक्का मार्ग, जो वनांचल में स्थित शांत ग्राम पनवाड़ा तक पहुंचाता है। अब आबाद होने के बाद भी वन-बहुल इसी ग्राम में सदियों से श्रद्घालुओं के आस्थामय आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है मां अन्नपूर्णा का अत्यन्त प्राचीन व चमत्कारी मंदिर जहां माता रानी की स्वयंसिद्घ प्रतिमा आज एक रमणीय मंदिर के छोटे से गर्भ-गृह में विराजित है। तक़रीबन चार दशक पहले यह मंदिर एक मढ़ैया जैसा था, जहां वन्यजीव सहज विचरण करते देखे जा सकते थे। इसी मंदिर से कुछ दूरी पर स्थित है वो तालाब, जहां से श्योपुर की जीवनधारा “सीप” नदी का उद्गम हुआ है। यहां से सीप सरिता मानपुर क्षेत्रान्तर्गत त्रिवेणी-धाम तक की यात्रा पूरी कर पुराण-वर्णित चर्मण्यवती (चंबल) के साथ बनास नदी में मिल जाती है। जिसके दूसरे छोर पर ताजस्थान के सवाई माधोपुर ज़िलें की खण्डार तहसील सटी हुई है। इस पावन और मनोरम क्षेत्र के बारे में कभी विस्तार से बताने का प्रयास करूंगा। हाल-फिलहाल चर्चा मां अन्नपूर्णा के दरबार की।
चन्द सालों पहले तक मढ़ैया के रूप में स्थित इस प्राचीन सिद्घि स्थल को भले ही भक्तजनों व उपासकों के सहयोग से आज पक्के मंदिर में बदल दिया गया है लेकिन सुरम्य परिवेश में स्थित इस मंदिर के गर्भगृह में विराजी मां अन्नपूर्णा के दिव्य दर्शनों और अनुभूतियों के आभास की वह चाह नगरीय व ग्रामीण अंचल के हजारों श्रद्घालुओं में साल-दर-साल परवान चढ़ती जा रही है जो इस स्थल के निर्जन रहने तक भी अपनी हाजिरी लगाने बेखौफ़ होकर आया करते थे। जिनकी तादाद आज हज़ारों में है। माना जाता है कि दिवस के प्रथम पहर में बालिका, द्वितीय पहर में महिला तथा तृतीय पहर में वृद्घा के रूप में दर्शन देकर भक्तों को निहाल करने वाली मां अन्नपूर्णा के दरबार में जो भी शुद्ध हृदय व सच्चे मन से अपनी मनोकामनाऐं लेकर आया वह कभी खाली हाथ नहीं लौटा। यह मान्यता है उन हजारों आस्थावानों की जो इस स्थल से मन-वचन और कर्म से निरन्तर जुड़े हुए हैं तथा समय-समय पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने यहां आते हैं। यूं तो वर्ष भर भक्तजनों की उपस्थिति इस मंदिर पर दिखाई देती है लेकिन शारदीय व चैत्री नवरात्रा महोत्सव के चलते भक्तजनों का जो सैलाब यहां उमड़ता है वह जंगल में मंगल की उक्ति को सौ फीसदी सही साबित करने वाला होता है जो इन दिनों धूमधाम से जारी है।
★#आस्था_का_उमड़_रहा_ज्वार…
इन दिनों जबकि शारदीय नवरात्रा महापर्व एक बार फिर जनजीवन को शक्ति-उपासना में संलग्र बना चुका है वनांचल का यह शक्तिपीठ श्रद्घालुओं की अनवरत आवा-जाही का केन्द्र बना हुआ है। माता की भेंटों, भजनों और लांगुरिया के गायन से गुजायमान परिवेश में भक्तजनों के जयघोष वनांचल की निस्तब्धता को लगातार बेध रहे है। माता के चरणों में हाजिरी लगाने और अपने मनोरथ रखने वालों की आवा-जाही का यह सिलसिला सप्तमी, अष्टïमी और नवमी के दिन चरमोत्कर्ष पर रहेगा जब वाहनों पर सवार होकर आने वाले भक्तों की भावनाओं पर कनक-दण्डवत करते हुए यहां तक पहुंचने वाले वनवासी श्रद्घालुओं की आस्था का रंग अधिक हावी रहेगा। सड़क पर रेंगते तथा नमन करते हुए आगे बढऩे वाले श्रद्घालुओं के यह जत्थे नवरात्रा पर्व के दौरान मार्ग के दोनों और देखे जाऐंगे। जिनमें सबसे बड़ी संख्या ग्रामीण और वनवासी श्रद्घालुओं की होगी। यह भक्ति-भावना के वो जीवंत प्रमाण हैं जो चैत्र माह की झुलसा डालने वाली प्रचंड गर्मी में भी इसी तरह परिलक्षित होते हैं।
★#चलते_चलते_अहम_बात…
अपनी बात समाप्त करने से पहले स्मरण करा दूं कि यही वनांचल प्राकृतिक पर्यटन की अपार संभावनाओं का केंद्र है। इसी अंचल में एशियाई नस्ल के दुर्लभ सिंहों के लिए बसाया गया एक विशाल आशियाना है। जिसे “कूनो नेशनल पार्क” के रूप में जाना जाता है। यह और बात है कि शेरों के लिए प्रस्तावित अरबों की यह परियोजना अफ्रीकन व नामीबियाई चीतों की बसाहट के नाम कर दी गई है। जो क्षेत्रीय विकास के नाम पर कुत्सित राजनीति के एक छलावे से अधिक कुछ नहीं। एक-एक कर काल-कवलित हुए पौन दर्ज़न चीतों के कारण सुर्खी में आए इस नेशनल पार्क को आज भी दरकार उन शेरों की है, जो सुप्रीम न्यायालय के आदेश के बाद भी गुजरात के बलात् आधिपत्य में हैं और समय-समय पर आपदाओं के चलते अकाल मौत का शिकार बनते रहे हैं। गुजरात के प्रभाव वाले केंद्र के आगे पूरी तरह नतमस्तक मध्यप्रदेश की गूंगी सियासत भी ज़िलें व अंचल के साथ खिलवाड़ के लिए बराबर की ज़िम्मेदार है। लापरवाही के साथ चीतों की अकाल मौत के मामलों को एक राजनैतिक षड्यंत्र भी माना जा सकता है। जिसके पीछे की मंशा एशियाई शेरों को लेकर अंचल की पुरज़ोर मांग को कमज़ोर करना भी हो सकती है और “कूनो अभ्यारण्य” को अभिशप्त साबित करना भी। बताना मुनासिब होगा कि कूनो की आबो-हवा और धरातल की विशेषताओं को दुर्लभ सिंहों की बसाहट के लिए “गिर” से ज़्यादा बेहतर और अनुकूल पाया गया था। इस शोध के बाद ही संक्रमण व संकट में फंसी ऐशियन लॉयंस की दुर्लभ नस्ल को लुप्त होने से बचाने के लिए “कूनो वन्यजीव अभ्यारण्य” स्थापित करने की योजना पर अमल किया गया था। जिसकी सार्थकता पर कपट की सियासत ने मनमानी का पोंछा लगा दिया।
★#एक_आमंत्रण_आप_सभी_को…
इस खिलवाड़ के बावजूद पूरी तरह उपेक्षित ज़िले के वनांचल पर दैवीय कृपा की कोई कमी नहीं। वन संपदा व नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर वनांचल व ज़िले के साथ आज नहीं तो कल न्याय होगा और ज़रूर होगा, यह मेरे जैसे तमाम आस्थावानों की आशावाद से प्रेरित सोच भी है और उम्मीद भी। बहर विनम्र आमंत्रण श्रद्धालुओं व सैलानियों को। जिनके लिए यहां बहुत कुछ नहीं सब कुछ है। मां अन्नपूर्णा और आशुतोष भगवान भोलेनाथ की अनंत-असीम-अहेतुकी कृपा से। जो धूर्त राजनीति से लाखों-करोड़ों गुना शक्तिशाली व कल्याणकारी है। जय माता दी।।
■प्रणय प्रभात■
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)