■ चुनावी साल…
■ मत पूछो हाल…
चमड़े की उन ज़ुबानों का, जो अब और ज़्यादा फिसलेंगी। हरेक मर्यादा को लांघेंघी और भारत को महाभारत की याद दिलाएंगी। झूठ बोलेंगी, पोल खोलेंगी और न जाने क्या-क्या उगलेंगी। लोकतंत्र और संविधान के नाम पर।।
【प्रणय प्रभात】