■ चिंतनीय स्थिति…
■ असलियत दयनीयता की…
राजनेता कितनी ही डींगमारी कर लें। आम आदमी ख़ुद सुधरने को राज़ी नहीं। खोपड़ी पर लोभ इतना हावी हो चुका है कि वह एक ग्राहक से ही पूरी रोज़ी-रोटी वसूलने के चक्कर में लगा हुआ है। “आधी छोड़ पूरी को धावे, आधी मिले न पूरी पावे” वाली कहावत को भूल कर। इसी का लाभ चीन जैसे नीच देश उठा रहे हैं और ख़ुद “रेवड़ी कल्चर” चला रही सरकारें कामगारों को परजीवी व आरामखोर बना रही हैं। क्या यही है आत्मनिर्भरता का प्रयास…?
【प्रणय प्रभात】