■ काहे की मुस्कान ?
■ काहे की मुस्कान ?
【प्रणय प्रभात】
रोज़ बांट कर के मुस्कानें।
दर्द दिलों का लेने वाले।।
इस बस्ती को छोड़ गए हैं।
दिल पर दस्तक देने वाले।।
■ काहे की मुस्कान ?
【प्रणय प्रभात】
रोज़ बांट कर के मुस्कानें।
दर्द दिलों का लेने वाले।।
इस बस्ती को छोड़ गए हैं।
दिल पर दस्तक देने वाले।।