उसने कहा, "क्या हुआ हम दूर हैं तो,?
लिप्सा-स्वारथ-द्वेष में, गिरे कहाँ तक लोग !
*ठगने वाले रोजाना ही, कुछ तरकीब चलाते हैं (हिंदी गजल)*
बेफिक्र तेरे पहलू पे उतर आया हूं मैं, अब तेरी मर्जी....
ज्ञान /बोध मुक्तक
अटल मुरादाबादी(ओज व व्यंग्य )
मुझे अपनी दुल्हन तुम्हें नहीं बनाना है
परिसर खेल का हो या दिल का,