■ कटाक्ष / ढोंगी कहीं के…!
■ #ज़िम्मेदारी और भागीदारी…
【प्रणय प्रभात】
“साझेदारी में–
* प्यार
* व्यापार
* दुश्मनी
* यारी
★ मुफ़्त की मगज़मारी
और
* अदनी सी ज़िम्मेदारी…!
माफ़ कीजिए, अपने बस की बात नहीं !!
हमें शौक़ से काटिए-छांटिए।
ख़ैरात की रेवड़ी अपनों-अपनों को बांटिए ! वो भी तिल्ली निकाल कर, जो बाद में तेल निकालने के काम आएगी। चाहें तो संभाल कर रखें। अगले महीने “मकर संक्रांति” पर लड्डू बनाने के लिए। बड़े आए राजा बलि, कर्ण और भामाशाह की नक़ल करने वाले। ढोंगी कहीं के…!!”