■ एक और शेर…
■ अटल सत्य…
जो अपनी आकांक्षाओं और आवश्यकताओं से विमुक्त हो जाता है, उसे कोई भी अपने अधीन नहीं कर सकता। न कोई मठाधीश, न कोई शासक।।
यह हर युग का शाश्वत सच है। फिर चाहे वो युग महर्षि भृगु या दुर्वासा का हो। संत शिरोमणि रैदास का हो या संत कबीर का। हज़रत सरमद और मंसूर का हो या महाप्राण निराला और बाबा नागार्जुन का। दिव्य-कथा मन्दाकिनी के भागीरथ पूज्य गुरुदेव श्री राजेश्वरानंद जी और संत प्रवर मोरारी बापू का हो या फिर———-।।
【प्रणय प्रभात】