Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
10 Jan 2023 · 3 min read

■ आलेख / चर्चा में एक अद्भुत दोहा

#आलेख-
■ गागर में सागर की मिसाल एक दोहा
★ सुंदर आँखों की सबसे अनूठी प्रशंसा
【प्रणय प्रभात】
नायिका की आँखें सौंदर्य-शास्त्रियों के लिए सदैव से आकर्षण और विमर्श का विषय रही हैं। श्रृंगार रस के कवियों ने आँखों को एक से बढ़कर एक उपमाएं दी हैं। उनकी सुंदरता व मादकता पर कालजयी रचनाएं लिखी हैं। फिल्मी गीतकारों ने भी आँखों की शान में दस-बीस नहीं सैकड़ों बेहतरीन गीत रचे हैं। इन सबके बाद भी कोई कविता, कोई गीत रचना उस एक दोहे से बेहतर नहीं, जिसे साहित्य मंजूषा का कोहिनूर कहा जा सकता है।
मात्र दो पंक्तियों में आँखों का इतना समग्र वर्णन इससे पहले या इसके बाद शायद ही कोई कवि या शायर इतनी तरतीब के साथ कर पाया हो। आगे भी कोई कर पाएगा, नहीं लगता। “गागर में सागर” वाली उक्ति पर सौलह आना सटीक यह दोहा आँखों की संरचना और विशेषता के साथ उनके व्यापक प्रभाव को अपने मे समाहित किए हुए है। वो भी सम्पूर्ण नियोजित क्रमबद्धता के साथ। भाव और कला पक्ष के बेजोड़ संगम इस दोहे की भाषा-शैली भी अद्वितीय है। जो इसे हिंदी साहित्य के लाखों दोहों का सिरमौर भी बनाती है। दोहा इस प्रकार है:-
“अमिय, हलाहल, मद भरे,
सेत, स्याम, रतनार।
जियत, मरत, झुकि-झुकि परत,
जेहि चितवत इक बार।।”
अब इस दोहे की क्रमबद्धता का परीक्षण वर्णन, वैशिष्ट्य और प्रभाव के आधार पर करिए। ताकि इसका शब्द-शिल्प आप समझ सकें। सामान्यतः आँखें तीन रंगों से बनी हैं। जिनका वर्ण क्रम क्रमशः सफेद, काला और लाल है। इसी क्रम में तीनों वर्णों (रंगों) की तुलना क्रमानुसार अमृत, विष और मदिरा से की गई है। जो सफेद, काले और लाल रंग का प्रतिनिधित्व करते हैं। बिल्कुल यही क्रम इनके प्रभाव का है। अमृत जीवनदायी और विष मृत्युदाता है, वहीं मदिरा बारम्बार गिराने व उठाने की सामर्थ्य से परिपूर्ण। आँखों की बनावट, उनके गुणों की तुलना और प्रभावों का यही क्रमिक नियोजन दोहे को सारगर्भित व अद्भुत बनाता है। विशेषण, गुण और प्रभाव के क्रमानुसार शब्द-संयोजन किया गया होगा, ऐसा कहीं से भी प्रतीत नहीं होता। वजह है दोहे का भाषाई व शैलीगत सौंदर्य, जो पूर्णतः विशुद्ध ही नहीं नैसर्गिक भी लगता है।
सामान्यतः इस दोहे को रीति-काल के शीर्ष कवि व दोहा-सम्राट “महाकवि बिहारी” का माना जाता रहा। जिनकी ख्याति इसी शिल्प व शैली के असंख्य दोहों के कारण रही है। कालांतर में गहन शोध के बाद सच रेखांकित हुआ। पता चला कि यह अनूठा दोहा महाकवि बिहारी नहीं बल्कि उनके समकालीन कवि “सैयद रसलीन” का है। जो एक समर्थ व सशक्त साहित्यकार थे। उपलब्ध जानकारियों के अनुसार 1689 में जन्मे रसलीन का निधन 1750 में हुआ। रसलीन उपनाम से लिखने वाले सैयद गुलाम नबी
का जन्म बिलग्राम (हरदोई) उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनकी कुछ प्रमुख कृतियों में अंग दर्पण, रस प्रबोध, फुटकल कवित्त व स्फुट दोहे प्रमुख हैं। इनकी रचनाए हिन्दी में गुलाम नबी और नबी सहित रसलीन नामों से मिलती हैं। कवि ने मूल नाम से कवित्त और सवैये रचे जबकि रसलीन नाम से मुख्यत: दोहों की रचना की। इनमें संदर्भित दोहे का वास्ता अंग-दर्पण से माना जाता है। रसलीन के लिखे दो ग्रंथ अत्यन्त प्रसिद्ध हैं। जिनमें “अंग दर्पण” की रचना सन् 1737 ई. में हुई। जिसमे 180 दोहे हैं। दूसरा ग्रंथ “रस प्रबोध” है। जिसमें 1127 दोहे हैं। इसकी रचना सन् 1747 ई. में हुई।
विडम्बना की बात यह है कि उनकी तमाम रचनाओं की उपलब्धता के बाद भी उनका नाम अमूमन गुमनाम सा रहा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि हिंदी के शोधार्थी इस दिशा में प्रयास कर सैयद रसलीन की रचनाधर्मिता को साहित्य पटल पर लाएंगे, जो दुर्भाग्यवश दुर्लभ सी हो गई है। यदि ऐसा हो पाता है तो निश्चित ही रीति-काल का एक और पुंज साहित्याकाश पर पुनः आलोकित हो सकेगा।
【सुधि पाठकों सहित साहित्य के विद्यार्थियोँ व शोधार्थियों के लिए पठनीय संग्रहणीय व उपयोगी】
■ प्रणय प्रभात ■
श्योपुर (मध्यप्रदेश)
8959493240

Language: Hindi
1 Like · 448 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

बसंत का आगम क्या कहिए...
बसंत का आगम क्या कहिए...
डॉ.सीमा अग्रवाल
■ पाठक लुप्त, लेखक शेष। मुग़ालते में आधी आबादी।
■ पाठक लुप्त, लेखक शेष। मुग़ालते में आधी आबादी।
*प्रणय*
ज़माने   को   समझ   बैठा,  बड़ा   ही  खूबसूरत है,
ज़माने को समझ बैठा, बड़ा ही खूबसूरत है,
संजीव शुक्ल 'सचिन'
- मतलबी दोस्त आज के -
- मतलबी दोस्त आज के -
bharat gehlot
........,
........,
शेखर सिंह
पुजारी शांति के हम, जंग को भी हमने जाना है।
पुजारी शांति के हम, जंग को भी हमने जाना है।
सत्य कुमार प्रेमी
दौर अच्छा आयेगा
दौर अच्छा आयेगा
Sonu sugandh
महामारी
महामारी
Khajan Singh Nain
मां तुम्हें सरहद की वो बाते बताने आ गया हूं।।
मां तुम्हें सरहद की वो बाते बताने आ गया हूं।।
Ravi Yadav
*बे मौत मरता  जा रहा है आदमी*
*बे मौत मरता जा रहा है आदमी*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
मुलाक़ातें ज़रूरी हैं
मुलाक़ातें ज़रूरी हैं
Shivkumar Bilagrami
आश्रित.......
आश्रित.......
Naushaba Suriya
बढ़ी शय है मुहब्बत
बढ़ी शय है मुहब्बत
shabina. Naaz
फिर से अपने चमन में ख़ुशी चाहिए
फिर से अपने चमन में ख़ुशी चाहिए
Monika Arora
हम कुछ इस तरह समाए हैं उसकी पहली नज़र में,
हम कुछ इस तरह समाए हैं उसकी पहली नज़र में,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
बेहतर और बेहतर होते जाए
बेहतर और बेहतर होते जाए
Vaishaligoel
*आज़ादी का अमृत महोत्सव*
*आज़ादी का अमृत महोत्सव*
Pallavi Mishra
*संस्मरण*
*संस्मरण*
Ravi Prakash
बदल दो हालात तुम
बदल दो हालात तुम
Jyoti Roshni
__________________
__________________
विनोद कृष्ण सक्सेना, पटवारी
अभिमानी सागर कहे, नदिया उसकी धार।
अभिमानी सागर कहे, नदिया उसकी धार।
Suryakant Dwivedi
अभी एक बोर्ड पर लिखा हुआ देखा...
अभी एक बोर्ड पर लिखा हुआ देखा...
पूर्वार्थ
प्यार मेरा तू ही तो है।
प्यार मेरा तू ही तो है।
Buddha Prakash
शुभांगी।
शुभांगी।
Acharya Rama Nand Mandal
जाने के बाद .....लघु रचना
जाने के बाद .....लघु रचना
sushil sarna
जीवन मे
जीवन मे
Dr fauzia Naseem shad
बेख़ौफ़ क़लम
बेख़ौफ़ क़लम
Shekhar Chandra Mitra
बुढ़िया काकी बन गई है स्टार
बुढ़िया काकी बन गई है स्टार
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
"पुतला"
Dr. Kishan tandon kranti
प्रशांत सोलंकी
प्रशांत सोलंकी
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
Loading...