■ आज की खोज-बीन…
■ विज्ञापन लोक…
【प्रणय प्रभात】
घोर कलि-काल में जो हो जाए, वो थोड़ा है साहब! अब रिश्तों के पास ख़ुद को निभाने का वक़्त नहीं। दे दी पावर-ऑफ़-अटॉर्नी” चाय और मसालों को। ऐसे में क्या काम रिश्तों का…? कोई पूछे तो सही “विज्ञापन लेखक” से। जब रिश्ते ही नहीं तो मसाले और चाय किसके लिए…? गाय-भैंस-बकरी के लिए या फिर कुत्ता-बिल्ली के लिए…? ज़्यादातर लोग तो आज वो बचे हैं जिनकी दोनों चीज़ों पर डॉक्टर ने बेन लगा रखा है। वो भी परमानेंटली…!!