संवेदना कहाँ लुप्त हुयी..
मसीहा उतर आया है मीनारों पर
गुजिश्ता साल तेरा हाथ, मेरे हाथ में था
कविता: मेरी अभिलाषा- उपवन बनना चाहता हूं।
हम क्रान्ति तो ला चुके हैं कई बार
"हम बेशर्म होते जा रहे हैं ll
तलाशी लेकर मेरे हाथों की क्या पा लोगे तुम
ईमानदार,शरीफ इंसान को कितने ही लोग ठगे लेकिन ईश्वर कभी उस इं
जिन्दगी तेरे लिये
पूनम 'समर्थ' (आगाज ए दिल)
बहुत कुछ अरमान थे दिल में हमारे ।
उसकी याद कर ले , हे बन्दे !
निकले क्या पता,श्रीफल बहु दामाद
थिक मिथिला के यैह अभिधान,
*मेला कार्तिक पूर्णिमा, पावन पुण्य नहान (कुंडलिया)*
*गुरु महिमा (दुर्मिल सवैया)*