23/135.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
कुछ खास रिश्ते खास समय में परखे जाते है
संभलना खुद ही पड़ता है....
कत्ल करके हमारा मुस्कुरा रहे हो तुम
एक होस्टल कैंटीन में रोज़-रोज़
यूँ तो हम अपने दुश्मनों का भी सम्मान करते हैं
फूल
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
वो एक ही मुलाकात और साथ गुजारे कुछ लम्हें।
सेवा निवृत काल
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
कामवासना मन की चाहत है,आत्मा तो केवल जन्म मरण के बंधनों से म
बुद्ध चाहिए युद्ध नहीं / रजनी तिलक (पूरी कविता...)
विटप बाँटते छाँव है,सूर्य बटोही धूप।