"वक्त की बेड़ियों में कुछ उलझ से गए हैं हम, बेड़ियाँ रिश्तों
#नयी गाथा
वेदप्रकाश लाम्बा लाम्बा जी
Job can change your vegetables.
इतनी भी तकलीफ ना दो हमें ....
हारों की राहों से मैं चलता जा रहा हूँ,
दिन गुनगुनाए जब, तो रात झिलमिलाए।
हमने अपने इश्क को छोड़ा नहीं
प्रभु के स्वरूप को आत्मकेंद्रित कर उनसे जुड़ जाने की विधि ही
सफलता का जश्न मनाना ठीक है, लेकिन असफलता का सबक कभी भूलना नह
यूं ही कोई लेखक नहीं बन जाता।
सिर्फ वही इंसान शिक्षित है, जिसने सीखना और परिस्थितियों के अ
तारीफों में इतने मगरूर हो गए थे
कोई बात नहीं, अभी भी है बुरे