■ अनुभूति और अभिव्यक्ति-
■ अनुभव अपना अपना…
【प्रणय प्रभात】
दोस्तों! ख़ास कोई अवसर, प्रसंग कार्यक्रम या समारोह नहीं होता। ख़ास वो अहसास होते हैं, जो समारोह में आपके दिल-दिमाग़ को टटोलते रहते हैं। ख़ास होती है कुछ ख़ास और क़रीबी शख्सियतों से मेल-मुलाक़ात। जिसके बिना समारोह या आयोजन में भागीदारी अधूरी और निरर्थक सी लगती है। सार्वजनिक जीवन में अनगिनत आयोजनों और समारोहों में भागीदारी के दौरान मैने तो यही निष्कर्ष निकाला है कि आयोजन अपेक्षाकृत साधारण हो लेकिन उसमें भागीदारी के दौरान अच्छे लोगों का साथ और सान्निध्य मिले तो लगता है कि रात काली नहीं हुई। वहीं दूसरी ओर समारोह अत्यधिक भव्य हो और विलासिता के बीच भीड़ में तन्हाई का एहसास होता रहे तो समझिए कि सामने वालों ने अपनी औपचारिकताऐं पूरी कीं और आपने अपनी।”
शायद अब आयोजन का एकमात्र मक़सद भी यही रह गया है। अपनी विलासिता व रसूख की नुमाइश। सम्भव है कि प्रदर्शन की यह परिपाटी जल्द ही निरर्थक लगने लगे और लोग पुराने सरोकारों की ओर लौटते नज़र आए। ।✍🏻🙏🏼✍🏻🙏🏼✍🏻
●(अनुभव अपना-अपना)●
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