*भाषा संयत ही रहे, चाहे जो हों भाव (कुंडलिया)*
'नव कुंडलिया 'राज' छंद' में रमेशराज के विरोधरस के गीत
जो धधक रहे हैं ,दिन - रात मेहनत की आग में
देश हमरा श्रेष्ठ जगत में ,सबका है सम्मान यहाँ,
अछूत का इनार / मुसाफ़िर बैठा
मुझे अपनी दुल्हन तुम्हें नहीं बनाना है
मृत्यु शैय्या
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
नवीन वर्ष (पञ्चचामर छन्द)