⌚⌚ वक्त ⌚⌚
?? वक्त ??
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“वक्त को वक्त मिला जब भी”
तब वक्त ने वक्त पे ली अंगड़ाई।
वक्त पे वक्त निकाला नहीं
तो वक्त से वक्त की देना दुहाई।
‘वक्त पे वक्त की कद्र करो तुम’
वक्त-बेवक्त करो नहीं भाई।
‘वक्त के जैसा हितैषी नहीं’
और वक्त के जैसा नहीं हरजाई।
वक्त जो तेरे साथ रहे तो
फर्श से अर्श पे हो जिंदगानी।
वक्त जो फेरे आँख कभी तो
बन जाएँ नई-नई कहानी।
वक्त के साथ चलो जग में
तो वक्त तुम्हारे पीछे घुमे।
वक्त करेगा वारे-न्यारे
नित्य सफलता पदरज चूमे।
वक्त का मान किया जिसने
वह भूप-अनूप महान कहाया।
वक्त का जब अपमान हुआ
तब मूल-समूल दिखे छितराया।
सतयुग में बन हरिश्चंद्र नृप
जाकर के श्मशान बुहारे।
त्रेता में हुआ राम वक्त ही
लंका जाय असुर संहारे।
द्वापर में बन मनमोहन
कंस पछारा उसी के द्वारे।
कलयुग काल घने अवगुन
यहाँ वक्त भी रोये साँझ-सकारे।
वक्त का “तेज” सदा रहता
मानव-हित काज करे मंगल के।
वक्त-बेवक्त जो जानें नहीं
वे मानव रूप पशु जंगल के।
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? तेज 11/5/17✍