≈ माँ ≈
≈ माँ ≈
¤ दिनेश एल० “जैहिंद”
“माँ”
म…आँ !
कोमल अंतर्मन से
निकला हुआ अनादि स्वर
न जाने कितने अर्थों को
स्वयं में समेटे हुए
तथापि इस शब्द के पैदा
होने से पूर्व कोई अन्य शब्द
प्रस्फुटित नहीं हुआ होगा ।
ब्रह्मांड में गूंजने वाला
पहला नि:शब्द ।
हिरणी के शावक-मुख से
प्रथम जो स्वर
उच्चरित हुआ होगा—
“मे–मे—मे”
उसमें भी छुपा होगा
एक बेजुबान प्राणी की
अदम्य इच्छा !
कल-कल, छल-छल,
सर-सर, टन-टन,
फर-फर, खर-खर
जैसी ध्वनियों में
एक ध्वनि “…. आँ” भी रही होगी
जो “म” के संग गठजोड़ कर
“मआँ” बनाई होगी
तब फिर निश्छल,
वात्सल्यमयी, ममतामयी
“माँ…” की रचना हुई होगी ।
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दिनेश एल० “जैहिंद”
04. 06. 2017