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8 Apr 2022 · 1 min read

√√ *आकलन मेरा नित्य बदलता 【गीतिका】*

आकलन मेरा नित्य बदलता 【गीतिका】
■■■■■■■■■■■■■■■■■■■
(1)
नई दृष्टि-परिदृश्य ,आकलन मेरा नित्य बदलता
कभी व्यक्ति उपकारी लगता ,कभी जगत को छलता
(2)
कभी सुबह को देखा सूरज ,उगता उत्साहित-सा
हुई शाम तो मिला सूर्य ,वह ही थक-थक कर ढलता
(3)
कभी भरे संदूको में धन-दौलत अच्छी लगती
कभी खोलना उनके भारी-भारी ढक्कन खलता
(4)
कभी साँस का आना-जाना पता नहीं चल पाता
दो साँसों के लिए कभी जीवन हाथों को मलता
(5)
कभी-कभी बढ़ता है तन ,कपड़े छोटे पड़ जाते
कभी बर्फ की पड़ी हुई सिल्ली-सा क्षण-क्षण गलता
—————————————————-
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

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