••कृष्ण लीला••
पहली सखी दूसरी सखी से-
आज पनघट पे नहीं चलेगी का?
दूसरी सखी-न सखी मैं आज नायें जाउँगी।
पहली सखी-चौं का है गयो आज तू पानी भरवे चौं न जायेगी?
दूसरी सखी -का बताउं सखी कल जब मैं पानी भरवे गयी तो नन्द के छोरा ने मेरी मटुकिया फोर डारी। कल से मेरी कमर बहुत ही पिराय रयी है और पानी भरवे के ले मेरे पास दूसरी मटुकियाउ नायें है।
पहली सखी-तू मेरे घर से मटकी ले ले।
दूसरी सखी -न सखी मैं तोसे मटकी नायें लूँगी वो कन्हैया बङो ही शरारती है कउूँ वाने तेरी मटकी फोर दयी तो….
पहली सखी -सखी तू कह तो सही रही है जा कन्हैया ने तो नाक में दम कर दयो है। रोज मटकी फोर के हमारे खसमन तै हमकू ताने परवात है, वरजोरी करत है और गारी देओ तो तारी दे दे हँसत है।
तीसरी सखी का आगमन -अरी सखियों…. बातें ही बनाती रहोगी या पनघट पेऊ चलोगी।
दूसरी सखी -का पानी भरवे जाऊँ कल कन्हाई ने मेरी मटुकिया फोर डारी। अब पानी का हाथ में लाऊँ।
तीसरी सखी -हाँ सखियों परसों मेरी मटुकिया ऊ नन्द के छोरा ने फोर दयी। मेरे खसम ने तो मोय बहुत मारो हथो। जे देखो मेरे बदन पे निशान पर गये।
सब एक साथ -चलो सखियों उलाहना लेके यशोदा के पास चलें।
यशोदा मैैया के यहाँ-सभी सखियाँ एक साथ -यशोदा तेरो लाला हम सबन कू भोत सताबत है। रोज हमारी मटकी फोर देत है हमें परेशान करत है और फिर तारी दै दै के हसत है।
यशोदा माँ-अच्छा अभी रूको… आवाज़ लगातीं है।
कान्हा अरे ओ कान्हा
कान्हा -हाँ मइया का बात है?
यशोदा -कान्हा जे गोपियां का कह रयी हैं?
कान्हा-मैया जे झूठ बोल रही हैं।
कन्हैया गोपियों से -मासूमियत से काहे गोपियों आज तुम फिर आये गईं।
यशोदा -जे तेरो उलाहनो ले के मेरे पास आयीं हैं। तेरी रोज़ की शैतानीयन तेै मैं तंग आय गई हूँ। आज तो तोय बांध के ही रहूँगी।
सब सखियाँ एक साथ – न न यशोदा बहन ऐसो गजब मत करियो। हम तो कानहा से मिलवे कू याँ आयीं हैं। जब तक जाये देख न लें, हमारी अँखियन कू चैन न परत है। जा की एक छवि देखवे के लै हम बहानो बनाकर और कोई न कोई उलहानो लेैके याँ आ जाती हैं। अच्छा अब हम सब पनघट पे पानी भरवे जाय रहीं हैं।
चलो सखी पनघट पे पानी भरवे चलें।
सखियाँ कान्हा से चलते समय- पनघट पे आये जइयो मटकी फोरवे कू।
।।राधे- राधे।।
– Ragini