Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
16 Oct 2021 · 4 min read

६० के दशक की दीपावली

गांव बाला कच्चा घर तोड़ कर नया पक्का मकान बन गया था। आज बर्षों बाद नवरात्र में कुलदेवी पूजा एवं नए मकान के उद्घाटन में सभी भाई बहन एकत्रित हुए थे, नौकरी काम धन्धे के लिए संजले भैया को छोड़कर सभी बाहर अलग-अलग शहरों में रहने लगे हैं।आज सभी पुरानी यादें ताजा हो गईं,घर का स्वरूप बदल गया, लेकिन पुराना घर और मां दोनों की ही बहुत याद आ रही थी,आए भी क्यों नहीं, यहीं तो जीवन के वे स्वर्णिम पल गुजरे हैं जो भूले नहीं भुलाते।कच्चा लिपा पुता हुआ घर वो आंगन,वो कलात्मक रसोई घर जिसके प्रवेश द्वार पर मां ने कोठियां बनाईं थीं, दोनों कोठियों के मध्य सुंदर आर्च बनी हुई थी,रसोई घर में दो लगे हुए चूल्हे हुआ करते थे, जिनकी आग कभी नहीं बुझा करती थी। रसोई में रोज चौका पीला मिट्टी से लगता था,तब आग बरोसी में कर दी जाती थी। रसोई घर से जुड़ा हुआ बड़ा सा हाल था जिसमें भगवान का पूजन स्थान भी मां ने महाराव दार बनाया था,दीबार से सटा हुआ हाल के बराबर ही दो ढाई फीट चौड़ा चबूतरा बना हुआ था, फिर एक हाल , फिर दालान खुला हुआ आंगन एवं आंगन के बीचों-बीच चबूतरे पर बना एक बहुत ही सुन्दर तुलसी चौरा हुआ करता था। घर के पीछे गाय बैल एवं खेती किसानी के सामान रखने का छप्पर था। घर के मुख्य द्वार के दोनों ओर दो कमरे थे जिसमें दादा जी सोए बैठे रहते थे, बाहरी दालान में उनका बहुत भारी तखत शोभायमान रहता था।डोरिया बिछा रहता था, जिस पर सभी गांव के बुजुर्ग बैठे रहते,गंजपा, चौपड़ एवं बातें किया करते थे,जो ज्ञान प़द एवं रोचक हुआ करतीं थीं, खेती किसानी, सामाजिक राजनीतिक सभी तरह की चर्चाएं हुआ करतीं थीं।
इधर घर के अंदर दादी का राज था,घर में घी दूध होता था,उस जमाने में बिजली नहीं हुआ करती थी,पीतल की चिमनी लालटेन जला करती थी। दिनचर्या भोर ४-५बजे से शुरू हो जाती थी, बड़ी मां बुआ मां चक्की पीसते हुए गीत गाया करतीं जो सुरीले एवं अर्थ पूर्ण भजन हुआ करते थे,दादी की सुबह होने से पूर्व ही बाहर एबं आंगन में झाड़ू लग जाती,गाय भैंस की दुहने का काम ताऊजी करते। सुबह-सुबह हम सब बच्चों को दादी कांसे की थाली कटोरी में रात को बनी हुई दूध महेरी देतीं, जिसका स्वाद भूले नहीं भुलाता।
पानी कुएं से लाना पड़ता था,जो मां एवं बहिनें लातीं थीं,नहा धोकर रोटी दिन में दूसरे अन्य घरेलू काम,फिर दिया बाती फिर रात की ब्यारू। कितना काम करतीं थीं मां,आज की बहू बेटियां कर तो क्या पाएंगी सोच भी नहीं सकतीं।
मुझे अच्छी तरह याद है, कुलदेवी पूजन से पहले कैंसे पूरे घर की सफाई लिपाई पुताई किया करतीं थीं। फिर दीपावली की तैयारियों में जुट जातीं थीं, कितना सुहाना मौसम हो जाता था गांव में,बर्षा ऋतु के बाद खेतों में पगडंडियों से जाते हुए हरियाली देखना वो हवा आज भी रोमांचित करती है, नदियों में पानी निर्मल बहने लगता है,खेत हल बख्खर बहुत ही अच्छा लगता था। सभी अपने अपने मकान मिट्टी की चिटें लगाकर ठीक करते, फिर छुई (सफेद रंग) एवं गेरू से पुते मकानों की शोभा ही कुछ और होती थी।
धन तेरस के पहले ही सारे कार्य पूर्ण हो जाते,रात में दिए जलाए जाते।चौदस के दिन हाट बाजार से बचा हुआ जरुरत का सामान,हम लोगों को पटाखे बम के गोले,नए कपड़े आ जाते,हम बहुत खुश हो जाते, उछल उछल कर एक दूसरे को बताया करते थे।
अमावस्या के दिन हम सब अपने गाय बैल को नदी में नहलाते,शाम होते ही पूजन की तैयारी शुरू हो जाती, लक्ष्मी पूजा के बाद,गाय का पूजन कियाजाता,उनको कलर किया जाता, मोरपंख एवं आभूषण से सजाया जाता।घर में माबा तैयार कर गुजिया पपड़ियां और मिठाई बनती थी,जो कई दिनों चलती थी।
दिपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा होती,गाय बैल को पटाखों से विदकाना बहुत मनोरंजक होता था।
दिवाली के दूसरे दिन भाईदूज मनाई जाती थी, जिसमें बहिनें भाई का तिलक कर उसके सुखद भविष्य की कामना करतीं हैं।
इन्हीं दिनों में अगली फसल के लिए बीज बोने की शुरुआत होती है, इसके लिए बैलों को ४ बजे रात से ही बीर (चारे बाली पडत भूमि) पर चराने जाना होता था,उन रातों के अलग-अलग किस्से सुनने सुनाने का अलग ही मजा था।
दादा दादी मां पिताजी, उनके साथ के और लोग सब चले गए। समय और तरक्की के हिसाब से गांव भी बदल गए ।
कितना काम करतीं थीं मां, कितना कठिन काम होता था गांव का। कितना स्वादिष्ट भोजन कितनी चिंता करतीं थीं हम लोगों की।अब सब सपना रह गया,न अब वो गांव रहा न अब वो वातावरण सब कुछ बदल गया है, नहीं बदलीं तो बस पुरानी यादें।
सुरेश कुमार चतुर्वेदी

5 Likes · 6 Comments · 241 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from सुरेश कुमार चतुर्वेदी
View all
You may also like:
"सृजन"
Dr. Kishan tandon kranti
एक तो गोरे-गोरे हाथ,
एक तो गोरे-गोरे हाथ,
SURYA PRAKASH SHARMA
हरषे धरती बरसे मेघा...
हरषे धरती बरसे मेघा...
Harminder Kaur
झूठ रहा है जीत
झूठ रहा है जीत
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
🌹ढ़ूढ़ती हूँ अक्सर🌹
🌹ढ़ूढ़ती हूँ अक्सर🌹
Dr Shweta sood
चुन लेना राह से काँटे
चुन लेना राह से काँटे
Kavita Chouhan
■ एक ही उपाय ..
■ एक ही उपाय ..
*Author प्रणय प्रभात*
बाकी सब कुछ चंगा बा
बाकी सब कुछ चंगा बा
Shekhar Chandra Mitra
शिव-स्वरूप है मंगलकारी
शिव-स्वरूप है मंगलकारी
कवि रमेशराज
भोर पुरानी हो गई
भोर पुरानी हो गई
आर एस आघात
कुछ कहमुकरियाँ....
कुछ कहमुकरियाँ....
डॉ.सीमा अग्रवाल
जग-मग करते चाँद सितारे ।
जग-मग करते चाँद सितारे ।
Vedha Singh
"आओ मिलकर दीप जलायें "
Chunnu Lal Gupta
23/68.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/68.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
नई तरह का कारोबार है ये
नई तरह का कारोबार है ये
shabina. Naaz
नजरिया
नजरिया
नेताम आर सी
जब स्वार्थ अदब का कंबल ओढ़ कर आता है तो उसमें प्रेम की गरमाह
जब स्वार्थ अदब का कंबल ओढ़ कर आता है तो उसमें प्रेम की गरमाह
Lokesh Singh
"प्यार की कहानी "
Pushpraj Anant
ब्राह्मण
ब्राह्मण
Sanjay ' शून्य'
तुझसे कुछ नहीं चाहिये ए जिन्दगीं
तुझसे कुछ नहीं चाहिये ए जिन्दगीं
Jay Dewangan
केवल पंखों से कभी,
केवल पंखों से कभी,
sushil sarna
(2) ऐ ह्रदय ! तू गगन बन जा !
(2) ऐ ह्रदय ! तू गगन बन जा !
Kishore Nigam
कौन पंखे से बाँध देता है
कौन पंखे से बाँध देता है
Aadarsh Dubey
माँ मुझे जवान कर तू बूढ़ी हो गयी....
माँ मुझे जवान कर तू बूढ़ी हो गयी....
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
संस्कार और अहंकार में बस इतना फर्क है कि एक झुक जाता है दूसर
संस्कार और अहंकार में बस इतना फर्क है कि एक झुक जाता है दूसर
Rj Anand Prajapati
इक नयी दुनिया दारी तय कर दे
इक नयी दुनिया दारी तय कर दे
सिद्धार्थ गोरखपुरी
It is not necessary to be beautiful for beauty,
It is not necessary to be beautiful for beauty,
Sakshi Tripathi
अब मेरी मजबूरी देखो
अब मेरी मजबूरी देखो
VINOD CHAUHAN
बारिश पर लिखे अशआर
बारिश पर लिखे अशआर
Dr fauzia Naseem shad
*ज्ञानी की फटकार (पॉंच दोहे)*
*ज्ञानी की फटकार (पॉंच दोहे)*
Ravi Prakash
Loading...