टक्कर
टक्कर ना हो
चलना सम्भल के,
दीखता है जो
होता नही है ।
खुले साँड़ों का
क्या बात करना,
घुमती यूँ गायें
मनमानी हुई हैं ।
रास्ते कहानी यूँ
बयां करती है,
घोड़ी किसी की
घोड़ा कोई बना है ।
मिलना गले से
छलावा बड़ा ये,
नफ़रत जताने का
तरीक़ा नया है ।
सड़क पर इन्सानी
आतंक बरपा , और
आतंकी परींदा ,बेख़ौफ़
नभ में पला है ।
कैसे बताएँ ,क्यों
हर शख़्स सहमा,
क़ातिल रहनुमा का
ना कोई पता है ।
डा॰ नरेन्द्र कुमार तिवारी