२) “डील”
हिम्मत चाहिए , जनाब !
सच कहने की
झूठ कहने की
सच को झूठ
झूठ को सच,
और कहने कीं-
मोहब्बत है हमें !
तुमसे मोहब्बत है-
ये कहने में ,
सदियाँ गुज़र जाएँगी,
कुछ ऐसी बात हो-
तब तो कहें !
ये तो बाज़ार है,
जैसे सब बिकतीं हैं,
मोहब्बत भी परखी
जाती है , तोल-मोल
के लिए ,सौदा हुआ,
मोहब्बत हो गयी !
शर्तों वाली ,धन-ऋण,
गुणन-फलन वाली !
मोहब्बत कल के
ज़माने की कहानी है,
आज “डील” का जमाना है,
“सशर्त “मोहब्बत की
बात होती है,
मोहब्बत की नही ।
नरेन्द्र