१६ परिंदा
एक पंछी हवा में उड़ अपनी परछाईं छोड़ चला
कुछ दूर वो उड़ा और उसी राह में एक हो चला
वो घने अंधेरे से उजले सवेरे की ओर बढ़ चला
और अपने पीछे सफलता के निशान छोड़ चला
उस परिंदे के सुंदर पंख थे छोटे और नए नवेले
फिर भी वो लम्बी उड़ान पर निकल पड़ा अकेले
उस पंछी के अनोखे अरमान थे बहुत ही निराले
ये ज़मीं और आसमान भी कम था उसके हवाले
उसे अपनी ज़मीन से जुड़े होने का था गुमान
हिम की चोटी पर भी उसकी सोच थी समान
ऐसे बुलंद इरादे लिए सफ़र पर निकल चला
एक पंछी हवा में उड़ अपनी परछाईं छोड़ चला