Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
7 Mar 2018 · 3 min read

१५ क्षणिकाएँ

(१.) तार
———–
आत्मा
एक तार है
जोड़ रखा है जिसने
जीवन को
मृत्यु से
और मृत्यु को
जोड़ा है …
पुन: नवसृजन से ….

(२.) क्रांति
————-
परत-दर-परत
खुल रही हैं वे बातें
जो लाख पर्दों में
छिपीं रहती थीं …
ये वास्तव में
परिवर्तन है
या दूर संचार क्रांति
से उपजी …
कोई अन्य दुनिया
जहाँ बिना आईने के
सब कुछ
देखा जा सकता है!!

(३.) संवेदनाएँ
—————–
जीवन का अस्थित्व
अभी बाकी है
शायद इसलिए
बम धमाकों
और जिहादी नारों
के बीच भी बची हुई हैं
कुछ मानवीय संवेदनाएँ !

(४.) प्रवाह
————
वे शब्द ही अपना
सार्थक प्रभाव
छोड़ पाने में
सक्षम हैं शायद …
जो स्फुटित होते हैं
स्वयमेव
शब्द प्रवाह से …
वर्ना रचनाएँ
शब्दों की कब्रगाह
ही तो हैं ……।

(५.) अहम्
————
जीवित है अहम् जब तक
शायद मानव
जीवित है तभी तक …
वरना —
जलने से पूर्व
लाश भी
एक शरीर ही तो है।

(५.) भाग्य
————
खुद ही बदलता है
समर्थ व्यक्ति
अपना भाग्य
शायद इसलिए
ज्योतिष को नहीं
मानते कुछ लोग
क्योंकि —
वास्तविक रेखाएँ
कर्म से ही बदलती हैं।

(६.) रेखांकन
—————
स्वयं को
रेखांकित करने के
प्रयास में … बिखर गया
रचनाकार स्वयं …
अपने ही भीतर
अंतहीन विस्तार में …

(७.) सम्प्रेषण
—————–
सम्प्रेषण यदि नहीं है
तो हमारा स्वर स्वयं
हमारी आत्मा को भी
नहीं झकझोर सकता …
परमात्मा को
पाना तो बहुत
दूर की बात है ….

(८.) तूलिका
—————
तूलिका से जब
अनुशासित रूप में
रंग काग़ज़ पर
उकेरे जाते हैं
तो चित्र स्वयं
बोलता है …
चित्रकार तब भी
मौन चुनता है।

(९.) नियति
————–
आँखों से जो दृष्टिगोचर है
यदि वह सत्य है
तो फिर
भ्रम की मनोस्थिति क्या है
क्यों मानव की नियति
कुछ और …
कुछ और जानने में है।

(१०.) संस्कार
—————-
पाश्चात्य पाशुविकता,
दरिंदगी और भोंडेपन को
अपना कर हम न तो
आत्याधुनिक ही बन सके
और न ही हमारे भीतर
परम्परागत संस्कार ही
जीवित रह पाए …
जो हमारे भीतर / निरंतर
मानवता के कई
अध्याय रचते थे !!

(११.) आलोक
—————-
जीवन के प्रस्थान बिन्दू से
हम अपने चरमबिन्दू पर
पंहुच हैं …
चहूँ ओर अब तक
कमाए गए
समस्त अनुभवों का
आलोक फैला है
और प्रकाश से
चकाचौंध आँखें
कुछ भी देख पाने में
असमर्थ हैं !

(१२.) विकट
————–
आस और निरास के
बीच की स्थिति
बड़ी ही विकट है …
व्यक्ति न तो
उधर ही जा पाता है
जहाँ उसे जाना है
और इधर का भी
नहीं रहता जहाँ वह
अपने शरीर का समस्त भार
पृथ्वी पर डाले खड़ा है …

(१३.) दुराग्रह
—————
अपने अस्थित्व को
बचाए रखने के लिए
आवश्यक है कि
हम अपने
समस्त दुराग्रहों को
त्याग दें वरना
एक समर्थ रचनाकार
बनने की दौड़ में
हम सबसे पीछे
छूट जायेंगे …

(१४.) वक़्त
————-
वक़्त तेज़ी से
बदल रहा है
लेकिन
बदलते वक़्त में भी
यह समझना
आवश्यक है कि
अपनी जड़ों को
छोड़ देने से
वृक्ष का अस्थित्व
ख़त्म हो जाता है …

(१५.) चाह
————
हर तरफ़
अन्धकार व्याप्त है जहाँ,
हमें स्वयं को उसके
अनुरूप ढालना होगा
अन्यथा प्रकाश की चाह हमें
पल-पल, तिल-तिल
गला डालेगी।

Language: Hindi
1 Like · 594 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
View all

You may also like these posts

*कण-कण में तुम बसे हुए हो, दशरथनंदन राम (गीत)*
*कण-कण में तुम बसे हुए हो, दशरथनंदन राम (गीत)*
Ravi Prakash
व्यथित मन
व्यथित मन
सोनू हंस
शरण आया ना होता
शरण आया ना होता
Dr. P.C. Bisen
बात तनिक ह हउवा जादा
बात तनिक ह हउवा जादा
Sarfaraz Ahmed Aasee
भगवा रंग में रंगें सभी,
भगवा रंग में रंगें सभी,
Neelam Sharma
आमावश की रात में उड़ते जुगनू का प्रकाश पूर्णिमा की चाँदनी को
आमावश की रात में उड़ते जुगनू का प्रकाश पूर्णिमा की चाँदनी को
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
" कलम "
Dr. Kishan tandon kranti
हर कदम प्यासा रहा...,
हर कदम प्यासा रहा...,
Priya princess panwar
दोहावली...
दोहावली...
आर.एस. 'प्रीतम'
- तुम मेरे लिए आरुषि के समान -
- तुम मेरे लिए आरुषि के समान -
bharat gehlot
दिल टूटा
दिल टूटा
Ruchika Rai
नागपंचमी........एक पर्व
नागपंचमी........एक पर्व
Neeraj Agarwal
क्यों इस तरहां अब हमें देखते हो
क्यों इस तरहां अब हमें देखते हो
gurudeenverma198
*एक तथ्य*
*एक तथ्य*
*प्रणय*
Mohabbat.....
Mohabbat.....
Jitendra Chhonkar
ग़ज़ल _ तलाशो उन्हें बे-मकाँ और भी हैं ,
ग़ज़ल _ तलाशो उन्हें बे-मकाँ और भी हैं ,
Neelofar Khan
हे आदिशक्ति, हे देव माता, तुम्हीं से जग है जगत तुम्ही हो।।
हे आदिशक्ति, हे देव माता, तुम्हीं से जग है जगत तुम्ही हो।।
Abhishek Soni
पता ही नहीं चलता यार
पता ही नहीं चलता यार
पूर्वार्थ
कुंडलियां
कुंडलियां
Santosh Soni
ये जो लोग दावे करते हैं न
ये जो लोग दावे करते हैं न
ruby kumari
हादसा
हादसा
Rekha khichi
प्रेषित करें प्रणाम
प्रेषित करें प्रणाम
महेश चन्द्र त्रिपाठी
इस बुझी हुई राख में तमाम राज बाकी है
इस बुझी हुई राख में तमाम राज बाकी है
कवि दीपक बवेजा
वक्त को कौन बांध सका है
वक्त को कौन बांध सका है
Surinder blackpen
मुखर मौन
मुखर मौन
Jai Prakash Srivastav
"आया मित्र करौंदा.."
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
दोहे
दोहे
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
अपने
अपने
Suraj Mehra
नाम कमाले ये जिनगी म, संग नई जावय धन दौलत बेटी बेटा नारी।
नाम कमाले ये जिनगी म, संग नई जावय धन दौलत बेटी बेटा नारी।
Ranjeet kumar patre
2817. *पूर्णिका*
2817. *पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
Loading...