१४ राह
एक राह मिली बेगानी सी
इस मोड़ पे खड़ी दीवानी सी,
ले जाएगी मुझे किस डगर,
किस गाँव, कौन से नगर।
मैं उससे पूछ बैठा होके निडर
इस राह में कितने रोड़े और कंकर,
आगे का रास्ता है सरल व सुंदर,
उसने कहा मुझसे ख़ुश हो कर।
जाना कहाँ है वो पूछी पलट कर,
ले चल मुझे उस ख़ुशनुमा शहर
जहाँ कल-कल बहती हो एक नहर
और पत्ता बूटा करे निर्भय बसर।
इस ओर है एक मंज़िल गर
तो उस ओर है कोई मज़धार
जाना है मुझे उसी राह पर
जहाँ मिलेगा मुझे मेरा संसार।