***** ०००० मुक्तक ०००० *****
1. हिंदी से ही शान,
हिंदी से ही मान,
हिंदी से हमारी,
दुनिया में पहचान|
2. बचपन खेल खेल में बीता,
जवानी मौज से जीता,
बुढ़ापा देख वो हर पल’,
किसी को दुःख न देता |
3. वाणी में मिसरी घुल जाये,
जो भी सुने वही हर्षाये,
हर कोई चाहे सुनना औ,
सुनने को तरसे – ललचाये |
@ कवि कपिल खंडेलवाल “कपिल”
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कोटा (राजस्थान)
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