मैं घमंडी नहीं हूँ ना कभी घमंड किया हमने
ये जो आँखों का पानी है बड़ा खानदानी है
कभी मोहब्बत के लिए मरता नहीं था
मुक्तक
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
तुम छा जाते मेरे दिलों में एक एक काली घटा के वाई फाई जैसे।
यही मेरे दिल में ख्याल चल रहा है तुम मुझसे ख़फ़ा हो या मैं खुद
हो सकता है कि अपनी खुशी के लिए कभी कभी कुछ प्राप्त करने की ज
तुम्हें पता है तुझमें मुझमें क्या फर्क है।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
सोलह आने सच...
Shyamsingh Lodhi Rajput "Tejpuriya"
जलते हुए चूल्हों को कब तक अकेले देखेंगे हम,
कुछ अजूबे गुण होते हैं इंसान में प्रकृति प्रदत्त,
अकेले मिलना कि भले नहीं मिलना।
स्त्री नख से शिख तक सुन्दर होती है...
*सब देशों को अपना निर्मम, हुक्म सुनाता अमरीका (हिंदी गजल)*
ग़ज़ल _ नहीं भूल पाए , ख़तरनाक मंज़र।