कुछ तुम रो लेना कुछ हम रो लेंगे।
मुक्तक _ चलें हम राह अपनी तब ।
झूठे लोग सबसे अच्छा होने का नाटक ज्यादा करते हैंl
मेरी शौक़-ए-तमन्ना भी पूरी न हो सकी,
शून्य हो रही संवेदना को धरती पर फैलाओ
*मांसाहारी अर्थ है, बनना हिंसक क्रूर (कुंडलिया)*
आज हम ऐसे मोड़ पे खड़े हैं...
वो मुझे अपना पहला प्रेम बताती है।
फूल
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
मिलने को उनसे दिल तो बहुत है बेताब मेरा
हिंदी दोहे- पौधारोपण
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
मैं लिखता हूँ जो सोचता हूँ !