-:।। भाई की ममता ।।:-
वारो पर वार सहे जब दुश्मन की ललकार सुनी।
हिम्मत टूट गई जब आंगन में दीवार बनी।
भाई की ममता को खुदगर्ज़ी ने ललकारा।
उस भाई से संग्राम हुआ जो रहा सहारा।
प्रातः जागा इस आशा में भाई ममता देगा।
दुख दर्दो की कारा से आकर मुक्ति देगा।
जिसको सोचा हाथो की लाठी उसने ली आंग्राई।
भाव भंगिमा देख बंधु की आई मुझे रुलाई।
अब कुछ रहा ना सेश है केवल तन्हाई।
लोप हो गए रिश्ते रहा स्वार्थ और चतुराई।