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21 Dec 2021 · 1 min read

हथियार बनाता हूं।

मैं झरने सा बहकर ही
कही भी धार बनाता हूं।
जमाने से अलग अपनी,
इक पहचान बनाता हूं।।

मैं पंछी सा उड़ता हूं ,
न अब घर बार बनाता हूं।।
अपने अंदाज का भी मैं,
नया किरदार बनाता हूं।

समझकर यूं अदना सा कवि,
न मुझपर वार करना तुम ।
मैं अदनी सी कलम को ही
बड़ा हथियार बनाता हूं।।

© अभिषेक पाण्डेय अभि

50 Likes · 8 Comments · 308 Views
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