।। बेटी ।।
बेटी,,,
आंसु नहीं वह मोतियों की लड़ी है,
आंगन में जिनके, बेटी खड़ी है,,
हँसी से उसकी, घर दमकता है जैसे,
हीरे की कनी, सोने में जड़ी है,,
सिर को दबाती, हाथ भी बटाती वो,
माँ के साथ जो, रसोई में खड़ी है,,
कलाई में भईया के, संसार को बांधे,
खुशियों की वह , अनमोल घड़ी है,,
गुड्डे-गुडियों के, खेल में जो डूबी,
घूंघट में जैसे, परी नन्ही खड़ी है,,
जाएगी एक दिन, डोली में बैठकर,
आंसुओं में भी, खुशी की झड़ी है,,
जोड़ेगी दो घरों को, जो बहु बनकर,
मर्यादा की वह , मजबूत कड़ी है,,
माँ से बेटी का, ये ममता का रिश्ता,
जिस्म से जैसे, हर सांस जुड़ी है,,
इंजी.हेमंत कुमार जैन
जबलपुर ।